एक ऐसा मंदिर यहां रहते है 25,000 चूहें, जिनका झूठा भक्तो को प्रसाद मे दिया जाता है
भले ही यहां आने वाले श्रद्धालु अपने घरों में चूहों को बर्दाश्त न करते हों, पर इस मंदिर में प्रवेश के बाद उन्हें चूहों के बीच ही रहना पड़ता है। यह मंदिर बीकानेर से 30 किमी की दूरी पर 'देशनोक' में स्थित है। आइए जानते हैं, और क्या-क्या चीजें इस मंदिर को सबसे अगल बनाती हैं।
यह मंदिर मुख्यत: माता करणी देवी को समर्पित है, जिन्हें माता 'जगदम्बा' का अवतार माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जहां यह मंदिर है वहां लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पहले माता करणी गुफा में रहकर अपने इष्ट देव की पूजा करती थीं। यह प्राचीन गुफा आज भी यहां स्थित है। कहा जाता है, मां की इच्छा से ही इस गुफा में माता करणी की मूर्ति स्थापित की गई थी। कुछ लोगों का मानना है कि आज का बीकानेर व जोधपुर मां के आशीर्वाद से ही अपने अस्तित्व में आए।
माता का मंदिर संगमरमर से बना हुआ है, जिसके मुख्य दरवाजें को पार करते ही यहां के चूहों की धमाचौकड़ी शूरू हो जाती है। संगमरमर के बने होने के कारण यह मंदिर काफी सुंदर व भव्य नजर आता है। मंदिर की दीवारों पर की गई आकर्षक नक्काशी इसे खास बनाती हैं। दीवारों, दरवाजों व खिड़कियों पर की गई बारीक कारगीरी किसी का भी ध्यान खींच सकती हैं। आप यहां धार्मिक गतिविधियों के अलावा यहां की वास्तुकला को देख सकते हैं। इस मंदिर का दरवाजा चांदी का और छत सोने से बनाई गई हैं।

मंदिर परिसर में चूहों की सेना देख कई बार भक्त घबरा भी जाते हैं। चूहों की संख्या का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मंदिर के मुख्य दरवाजे से लेकर माता की मूर्ति तक आपको पैर घसीटते हुए जाना होगा। श्रद्धालु इसी तरह माता करणी के दर्शन करते हैं। यहां ज्यादातर आपको काले चूहे ही नजर आएंगें, हां अगर आपको कोई सफेद चूहा दिखता है तो उसे पुण्य माना जाता है। मान्यता है कि अगर आप सफेद चूहे को देखकर कोई मनोकामना करते हैं तो वह जरूर पूरी होती है। यहां चूहों के प्रसाद के लिए चांदी की बड़ा परात भी रखी गई है।
करणी देवी मंदिर का निर्माण 20वी शताब्दी में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था। माता करणी बीकानेर राजघराने की कुलदेवी हैं। कहा जाता है कि माता करणी का जन्म एक चारण परिवार में हुआ था। कहा जाता है, शादी के एक समय बाद उनका सांसारिक जीवन से मन ऊब गया जिसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन भक्ति और सामाजिक सेवा में लगा दिया। जानकारों का मानना है कि माता करणी 151 साल तक जीवित रहीं, और ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित हो गईं।
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