एक युंग का अंत: नेता नहीं, DU में प्रोफेसर बनना चाहते थे वीरभद्र सिंह
शिमला. हिमाचल प्रदेश के छह बार के सीएम रहे वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) का लंबी बीमारी के बाद शिमला के आईजीएमसी अस्पताल में निधन हो गया है. 23 जून को ही उन्होंने अपना जन्मदिन मनाया था. हालांकि, वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं थे और दूसरी बार कोरोना (Corona) ग्रस्त और कोरोना से ठीक होन के बाद अस्पताल में भर्ती थे.
सूबे की सियासत की बात हो और वीरभद्र सिंह का नाम न आए, ऐसा संभव ही नहीं है. वीरभद्र सिंह कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे. 15 मई 2019 को शिमला के संजौली में जनसभा में वीरभद्र सिंह ने कहा था कि उनका सपना था कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में प्रोफेसर बनें, लेकिन कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रहीं इंदिरा गांधी के कहने पर वह राजनीति में आए. गौरतलब है कि वीरभद्र सिंह 25 साल की उम्र में सांसद बने थे.
दिल्ली से की थी पढ़ाई: वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून 1934 को शिमला जिले के रामपुर के सराहन में हुआ था. उनके पिता का नाम राजा पदम सिंह था. उनकी शुरुआती पढ़ाई शिमला के बिशप कॉटन स्कूल (बीसीएस) से हुई. बाद में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की. वीरभद्र सिंह अपने राजनीतिक करियर में केवल एक ही बार चुनाव हारे. देश में आपातकाल के बाद 1977 में जब कांग्रेस का देश से सफाया हो गया था, इसी दौरान वीरभद्र सिंह भी चुनाव हारे थे. वीरभद्र सिंह का संबंध राजघराने से है. वह बुशहर रियासत के राजा रहे.
केंद्रीय राजनीति में वीरभद्र का सफर: वीरभद्र सिंह ने पहली बार सन 1962 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे थे. इसके बाद 1967 और 1971 के लोकसभा चुनाव में भी इन्हें जीत नसीब हुई. 1980 में सीएम वीरभद्र सिंह ने फिर चुनावी ताल ठोकी और सांसद चुने गए. उन्हें इस दौरान राज्य मंत्री उद्योग मंत्री का प्रभार मिला था. इसके बाद वीरभद्र सिंह ने प्रदेश राजनीति की ओर रुख किया. हालांकि 2009 में वह एक बार फिर मंडी संसदीय सीट से सांसद चुने गए. इससे पहले जब 2004 में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी, तो इसी सीट से उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह सांसद चुनी गई थीं
1976 और 1977 के बीच वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में पर्यटन और नागरिक उड्डयन के लिए उपमंत्री का राष्ट्रीय कार्यालय भी संभाला था. वह 1980 से 1983 के बीच उद्योग मंत्री रहे. मई 2009 से जनवरी 2011 तक उन्हें केंद्रीय इस्पात मंत्री का जिम्मा सौंपा गया. बाद में जून 2012 में उन्हें माइक्रो, स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज जिम्मेदारी सौंपी गई. साल 1976 में वीरभद्र सिंह यूनाइटेड नेशन्स की जनरल असेंम्बली के लिए भारतीय डेलीगेशन के सदस्य भी रहे.
प्रदेश राजनीति में वीरभद्र सिंह के मुकाम: केंद्रीय राजनीति में अहम रोल अदा करने वाले वीरभद्र सिंह ने 1983 में प्रदेश राजनीति में सक्रियता बढ़ाई. सन 1983 में वह जुब्बल कोटखाई सीट से उपचुनाव जीते. इसके बाद सन 1985 के विधानसभा चुनावों में वीरभद्र सिंह ने जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से 1990, 1993, 1998 और 2003 में विधानसभा चुनाव जीते. सन 1998 से लेकर 2003 तक वह नेता विपक्ष भी रहे. इससे पहले 1977, 1979 और 1980 में वह प्रदेश कांग्रेस प्रभारी भी रहे.
1983 में पहली बार सीएम बने: वीरभद्र सिंह अप्रैल 1983 में पहली बार सीएम बने और 1990 तक मुख्यमंत्री के पद रहे. इसके बाद 1993 और 1998 और 2003 में वह फिर से सीएम की कुर्सी पर काबिज हुए. 2012 में वे रिकॉर्ड छठी बार हिमाचल के सीएम चुन गए. हिमाचल की राजनीति और प्रदेश के विकास में उनका अहम योगदान है.
एक बेटा और चार बेटियां: बता दें कि नवंबर 1985 में वीरभद्र सिंह ने प्रतिभा सिंह से दूसरी शादी की. उनका एक बेटा और चार बेटियां हैं. हिमाचल की राजनीति और कांग्रेस को इस राज्य में स्थापित करने में सीएम वीरभद्र सिंह का अहम योगदान रहा. साल 2015 में उन पर आय से अधिक संपत्ति बनाने के आरोप लगे और सीबीआई ने उन पर केस दर्ज किया. इस मामले में उनकी पत्नी, बेटे और बेटी को भी आरोपी बनाया गया है. फिलहाल मामला कोर्ट में विचाराधीन है. वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण से कांग्रेस विधायक हैं.
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