यहां स्त्री रूप में पूजे जाते हैं राम भक्त हनुमान, दर्शन मात्र से ही पूरी हो जाती है मुराद
रावण की लंका में आग लगा देने वाले राम भक्त हुनमान कलयुग में भी श्रेष्ठ पूजनीय माने जाते हैं। विश्वभर में हनुमान के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की भारत में बजरंग बली का एक ऐसा मंदिर भी है जहां वे पुरुष नहीं, वरन् स्त्री के वेश में विराजमान हैं। स्त्रियों से सदा ही दूर रहने वाले हनुमान जी को, इस मंदिर में स्त्री रूप में पूजा जाता है। बाकी विश्व में पवनपुत्र व राम भक्त हनुमान को समस्त भक्तजन बाल ब्रह्मचारी के रूप में पूजते हैं, जिस कारण स्त्रियों को उनकी किसी भी प्रतिमा का स्पर्श वर्जित बताया गया है।
रतनपुर में स्थित है यह अनूठा मंदिर
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर रतनपुर में स्थित है यह अनूठा मंदिर। रतनपुर को महामाया नगरी भी कहा जाता है, क्योंंकि यहाँ पर “माँ महामाया मंदिर” तथा “गिरजाबंध स्थित हनुमान जी मंदिर” है। इस छोटी सी नगरी में स्थित हनुमान जी का यह विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहाँ हनुमान जी को नारी रूप में पूजा जाता है। लोगों का मानना है यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है।
नारी स्वरूप में इसलिए होता है पवन पुत्र का पूजन
एक पैराणिक कथा के अनुसार यहां हुनमान की स्त्री रूप में पूजा करने का विशेष कारण बताया गया है। कथा के अनुसार लगभग 10,000 वर्ष पहले रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू को कोढ़ का रोग हो गया था। कोढ़ की बीमारी से लाचार देवजू ने विचार किया कि मैं इतना बड़ा राजा हूं, परंतु किसी काम का नहीं। मुझे कोढ़ का रोग हो गया है। अनेक उपचार किए, परंतु किसी औषधि से लाभ न हुआ। इस रोग के रहते न मैं किसी को स्पर्श कर सकता हूं, न ही किसी के साथ रमण कर सकता हूं। इस त्रास भरे जीवन से मृत्यु ही उपयुक्त है। ऐसा विचार करते हुए राजा को निद्रा आ गई।
स्वप्न में प्रकट हुए राम भक्त हनुमान
राजा ने स्वप्न में देखा, कि संकटमोचन हनुमान जी उनके सम्मुख प्रकट हुए। वेश देवी सा है, परन्तु देवी है नहीं, लंगूर हैं पर पूंछ नहीं। जिनके एक हस्त में मोदक से परिपूर्ण थाल है, तो द्वितीय हस्त में राम मुद्रा अंकित है। कर्ण में भव्य कुंडल हैं। माथे पर सुंदर मुकुट माला। अष्टश्रंगार युक्त हनुमान जी की दिव्य मंगलमयी मूर्ति ने राजा से कहा कि, “हे राजन! मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूं। तुम्हारा कष्ट अवश्य नाश होगा। तू मंदिर का निर्माण करवा कर, उसमें मुझे बैठा। मंदिर के पृष्ठ भाग में ताल खुदवाकर, उसमें स्नान कर एवं मेरी विधिवत् पूजा कर। इससे तुम्हारे शरीर में हुए कोढ़ का नाश हो जाएगा। इसके उपरांत राजा ने विद्धानों से सलाह ली।
उन्होंने राजा को मंदिर निर्माण की सलाह दी। राजा ने गिरजाबन्ध में मंदिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया। जब मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ, तो राजा ने सोचा कि मूर्ति कहां से लाई जाए, इस विचार के बाद एक रात स्वप्न में पुन: हनुमान जी प्रकट होकर बोले कि मां महामाया के कुण्ड में मेरी मूर्ति रखी हुई है। तू कुण्ड से उसी मूर्ति को यहां लाकर मंदिर में स्थापित करवा।” द्वितीय दिवस राजा अपने परिजनों व पुरोहितों को साथ देवी महामाया के दरबार में गए। वहां राजा व उनके साथ गए व्यक्तियों ने कुण्ड में मूर्ति की खोज की, परन्तु उन्हें मूर्ति नहीं मिली। निराश होकर राजा महल में लौट आए।
संध्या आरती पूजन कर विश्राम करने लगे। ह्रदय व्याकुल था कि हनुमान जी ने दर्शन देकर कुण्ड से मूर्ति लाकर मंदिर में स्थापित करने को कहा है एवं कुण्ड में मूर्ति नहीं मिली। इसी उधेड़बुन में राजा को निद्रा आ गई। निद्रा का झोंका आते ही, स्वप्न में पुन: हनुमान जी ने आकर कहा कि राजा, तू हताश न हो। मैं वहीं हूं, तूने सही से खोज नहीं की। वहां घाट पर जाकर देखो, जहां समस्त जन जल लेते हैं, स्नान करते हैं। उसी में मेरी मूर्ति रखी हुई है।”
राजा ने द्वितीय दिवस जाकर देखा, तो सचमुच वह अद्भुत मूर्ति उनको घाट में प्राप्त हो गई। यह वही मूर्ति थी, जिसे राजा ने स्वप्न में देखा था।
अद्भुत है पवन पुत्र की वह मूर्ति
राजा को प्राप्त इस मूर्ति में अनेक विशेषताएं हैं। इनका मुख दक्षिण की ओर है तथा साथ ही मूर्ति में पाताल लोक का चित्रण भी है। मूर्ति में रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए दर्शाया गया है। उनके अंग प्रत्यंग से तेज पुंज की छटा निकल रही थी। अष्टश्रंगार से युक्त मूर्ति के वाम काँधे पर राम लला व दाहिने काँधे पर अनुज लक्ष्मण के स्वरूप विराजमान, दोनों पाँव में निशाचरों (वाम पाँव के नीचे अहिरावन एवं दाहिने पांव के नीचे कसाई) को दबाये हुए हैं।
इस अदभुत मूर्ति को देखकर राजा मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए। फिर विधिविधान पूर्वक मूर्ति को मंदिर में लाकर प्रतिष्ठित कर दी तथा मंदिर के पृष्ठ भाग में ताल खुदवाया, जिसका नाम गिरजाबंद रख दिया। मनवांछित फल पाकर राजा ने हनुमान जी से वरदान मांगा, कि हे प्रभु, जो यहां दर्शन करने को आए, उसके समस्त मनोरथ सफल हों। इस प्रकार राजा पृथ्वी देवजू द्वारा निर्मित यह मंदिर भक्तों के कष्ट निवारण का ऐसा केंद्र हो गया, जहां के प्रति ये आम धारणा है कि हनुमान जी का यह स्वरूप राजा के ही नहीं, अपितु प्रजा के कष्ट भी दूर करने हेतु, स्वयं हनुमानी महाराज ने राजा को प्रेरित करके निर्मित करवाया है।
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