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मां रेणुका को दिए वचन को निभाने के लिए पहुंचें भगवान परशुराम

मां रेणुका को दिए वचन को निभाने के लिए पहुंचें भगवान परशुराम

कार्तिक शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान परशुराम मां रेणुका से मिलने आ रहे हैं। मां-बेटे के आध्यात्मिक मिलन के वीरवार को हजारों लोग साक्षी बनेंगे। मां रेणुका को दिए वचन को निभाने के लिए भगवान परशुराम श्री रेणुका जी पहुंचेंगे। इस ऐतिहासिक मिलन के साथ ही छह दिन तक चलने वाला ऐतिहासिक श्री रेणुकाजी मेला कार्तिक पूर्णिमा तक जारी रहेगा। भगवान परशुराम की शोभा यात्रा वीरवार दोपहर बाद शुरू होगी। खेल मैदान से शुरू हुई यह शोभा यात्रा शाम ढलने से पूर्व श्री रेणुका जी में प्रवेश करेगी।

यहां त्रिवेणी के संगम पर मां-पुत्र का विधिवत मिलन करवाया जाएगा। जिला प्रशासन ने छह दिन तक चलने वाले इस मेले की सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। रेणुका जी तीर्थ सहित ददाहू बाजार को दुल्हन की तरह सजाया गया है। शोभा यात्रा के दौरान हजारों लोग इसमें शिरकत करेंगे। अंतरराष्ट्रीय रेणुका मेले में दशकों पुरानी परंपरा को सिरमौर राजघराने का परिवार आज भी पूरी श्रद्धा से निभा रहा है।

सिरमौर राज परिवार के वंशज और राजघराने के वरिष्ठ सदस्य कंवर अजय बहादुर सिंह अपने परिवार के सदस्यों के साथ इस परंपरा का निर्वहन करेंगे। वीरवार को गिरि नदी के संगम तट पर कंवर अजय बहादुर सिंह अपने परिवार के सदस्यों के साथ भगवान परशुराम की प्रतीक्षा करेंगे। वह देवताओं की मुख्य पालकी को अपने कंधों पर उठाकर पंडाल तक लाएंगे। कंवर अजय बहादुर सिंह ने कहा कि भगवान परशुराम उनके कुल के देवता हैं। भगवान परशुराम कीउनके परिवार पर विशेष कृपा है।

महाराज राजेंद्र प्रकाश ने करवाया था चांदी की पालकी का निर्माण
अंतरराष्ट्रीय रेणुका मेले में भगवान परशुराम के शिरकत करने की परंपरा दशकों पुरानी है। उस समय से, जब यह मेला स्थानीय स्तर पर मनाया जाता था। पहले भगवान परशुराम की पालकी को तांबे की पिटारी में लगाया जाता था। उस दौरान सिरमौर रियासत के राजा विशेष रूप से भगवान परशुराम का स्वागत करने रेणुका मेले में आते थे। राज दरबार के सैनिक देवताओं के सम्मान में उन्हें 21 तोपों की सलामी दिया करते थे।

सिरमौर रियासत के अंतिम शासक महाराजा राजेंद्र प्रकाश ने भगवान परशुराम के प्रति अपनी आस्था को ध्यान में रखते हुए तांबे की पिटारी के स्थान पर चांदी की पालकी का निर्माण करवाया। तभी से भगवान परशुराम को मेले में चांदी की पालकी में लाया जाता है। रियासत काल के दौरान मेले में अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन किया जाता था। अब यह परंपरा राजा महाराजाओं का युग जाते ही बदल चुकी है।



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