भाग्यशाली लोगों की कुंडली में होते हैं ये योग, बनते हैं ज्योतिषी और धर्माचार्य
वैदिक ज्योतिष अनुसार जब भी किसी मनुष्य का जन्म होता है, तो उसकी कुंडली में नवग्रह शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के योगों का निर्माण करते हैं। इन योगोंं का फल उसे पूरी तरह से उन ग्रहों की दशाओं में मिलता है, जिनसे उस योग का निर्माण हुआ है। यहां बात करने जा रहे हैं उन शुभ योगों के बारे में, जो व्यक्ति को ज्योतिषी और धर्माचार्य बनाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र मुताबिक व्यक्ति की जन्मकुंडली के दशम भाव से व्यक्ति के कर्म का विचार किया जाता है। मतलब दशम, दूसरे और पंचम स्थान का विश्लेषण करके उसके करियर और आय का स्त्रोत पता लगाया जाता है। यहां हम बताने जा रहे हैं वो कौन से योग होते हैं जो व्यक्ति को ज्योतिषी और धर्माचार्य बनाते हैं…
ज्योतिषी और धर्माचार्य बनने के इन ग्रहों का मजबूत होना है जरूरी
1- बृहस्पति ग्रह नवम और दूसरे के कारक माने जाते है। जातक की धर्म में रूचि और उसकी वाणी सिद्ध होना बहुत ज़रूरी है। इसलिए गुरु ग्रह का बलवान होना जरूरी है।
2- बुध को वाणी का कारक माना जाता है। साथ ही इसके अलावा बुध संवाद का कारक है। इस विद्या को जो समझता है। इसलिए कुंडली में बुध ग्रह का मजबूत स्थिति में होना जरूरी है।
3- इसके अलावा जन्मकुंडली में वाणी भाव,नवम भाव,आठवां भाव भी बलवान होना चाहिए।
ये लोग बनते हैं धर्माचार्य और ज्योतिषाचार्ययदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में गुरु ग्रह वाणी भाव के स्वामी होकर पंचम में भाग्येश शुक्र के साथ विराजमान हैं। तो जातक बचपन से धर्म कर्म में रूचि रखने वाला और पुराण पढ़ने वाला है। साथ ही वह आगे जाकर ज्योतिषी या धर्माचार्य हो सकता है।
वैदिक ज्योतिष में बुध को गणित का कारक माना जाता है और गुरु ज्ञान है। वहीं चंद्र मन का कारक है। बुध, गुरु और चंद्र पूर्ण बलवान होकर वाणी भाव, पंचम भाव या नवम भाव में बैठे तो ऐसा जातक निश्चित रूप से विद्वान होता है। साथ ही ऐसे लोग फलित करने में माहिर होते हैं।
बुध गुरु राशि परिवर्तन, गुरु शनि राशि परिवर्तन, आठवें भाव का राजयोग बनाकर केतु के साथ आना ये सब कुछ ऐसे योग है जिनके होने पर भी व्यक्ति उत्तम ज्योतिषी या धर्माचार्य होगा।
वहीं अगर जन्मकुंडली के दूसरे भाव में गुरु या बुध ग्रह उच्च अवस्था में विराजमान हैं तो व्यक्ति ज्योतिषी और धर्माचार्य बन सकता है।
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