सावन की संकष्टी चतुर्थी 6 जुलाई को, शिवजी ने सनत्कुमार को बताई थी इस व्रत की विधि और महत्व
6 जुलाई, गुरुवार को सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत किया जा रहा है। शिव पुराण के अनुसार सबसे पहले भगवान शिव ने सनत्कुमार को सावन महीने में आने वाली संकष्टी चतुर्थी के व्रत की विधि और उसका महत्व बताया था। भगवान शिव ने संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में बताते हुए कहा था कि सावन में इस व्रत को करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
भगवान गणेश की विशेष पूजा और लड्डूओं का भोग लगाकर ब्राह्मण को लड्डूओं का दान करने से हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती है। इस तिथि पर भगवान गणेश के गजानन रूप की पूजा करने का विधान है, इसलिए इसे गजानन संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।
संकष्टी चतुर्थी और शिव पूजा
सावन महीने की संकष्टी चतुर्थी पर गणेशजी की पूजा के बाद भगवान शिव-पार्वती की पूजा भी करने का विधान है। भगवान शिव-पार्वती की पूजा सुगंधित फूल और सौभाग्य सामग्रियों के साथ करनी चाहिए।
गणेश पूजा के बारे में भगवान शिव ने सनत्कुमार को बताया कि इस चतुर्थी तिथि पर पूरे दिन बिना कुछ खाए पूरे दिन व्रत रखें और शाम को पूजा के बाद ही भोजन करना चाहिए।
सुबह जल्दी उठकर काले तिल से स्नान करें। सोने, चांदी, तांबा या मिट्टी की गणेश जी की मूर्ति बनवाएं। इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करें। फिर गणेश जी को लड्डूओं का भोग लगाएं। इसके बाद ब्राह्मणों को लड्डू दान करें। इस संकष्टी चतुर्थी व्रत में भगवान शिव की पूजा भी की जाती है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
पुरी के ज्योतिषाचार्य और धर्मग्रंथों के जानकार डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ है कठिन समय से मुक्ति पाना। दुखों से छुटकारा पाने के लिए इस दिन गणपति जी की अराधना की जाती है।
गणेश पुराण के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना फलदायी होता है। इस दिन उपवास करने का और भी महत्व होता है। भगवान गणेश को समर्पित ये व्रत कठिनाइयों और बुरे समय से मुक्ति दिलाता है। कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं इसे संकट चौथ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत करने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
पूजा की विधि
1. सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और साफ कपड़े पहनें। फिर व्रत का संकल्प लें और गणेशजी की पूजा करें।
2. शुद्ध पानी और पंचामृत से भगवान का अभिषेक करें। भगवान को नए कपड़े पहनाकर श्रंगार करें।
3. चंदन, अक्षत, फूल और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं। धूप-दीप अर्पित करें, लड्डूओं का भोग लगाकर नारियल चढ़ाएं।
4. संकष्टी व्रत की कथा का पाठ करें और आखिरी में आरती कर के प्रसाद बांट दें।
5. इसी तरह शाम को भी पूजा करें। फिर चंद्रमा के दर्शन कर के अर्घ्य दें।
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